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आजादी से अब तक के हर चुनाव के रोचक किस्सों बानगी लगाता ,देश का पहला इलेक्शन म्युजिअम

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आज़ादी से अब तक के हर चुनाव के रोचक किस्‍सों की बानगी दिखाता, देश का पहला ‘इलेक्‍शन म्‍युजि़यम’ संसार के सबसे बड़े लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रयोग होने जा रहा था। यह अक्टूबर 1951 से फरवरी 1952 का दौर था। इससे पहले चुनाव आयोग एक अजब परेशानी से जूझ रहा था। मतदाता सूची में दर्ज सैंकड़ों-हजारों नहीं बल्कि लाखों महिला वोटरों की पहचान ही नहीं हो पा रही थी। सूची में मतदाताओं के कॉलम में कुछ इस तरह का ब्योरा दर्ज था – ”छज्जू की मां, नफे सिंह की पत्नी, बलदेव की पत्नी, चंदरमोहन नेगी की सुपुत्री” … वगैरह, वगैरह। यह आज़ाद हिंदुस्तान की उन महिला वोटरों की कहानी थी जो वोटर सूची बनाने उनके घर पहुंचे चुनाव कर्मियों को अपना नाम नहीं बताना चाहती थी। किसी अजनबी के सामने अपना नाम उद्घाटित न करने के अपने ऊसूल पर कायम रही स्‍वतंत्र भारत की पहली पीढ़ी की महिला वोटरों की इस अजब दास्तान से जूझते चुनाव आयोग को आखिरकार निर्देश जारी करना पड़ा कि अपनी सही पहचान बताने वाली महिलाएं ही मतदाता रह सकती हैं। इसके बाद एक बार फिर से उन महिलाओं का नाम वोटर सूची में जोड़ने की कवायद शुरू हुई, जो रजिस्टर्ड वोटर होते हुए भी मतद...